बे-पर्दा नज़र आईं जो कल चंद बीबियाँ
अकबर ज़मीं में ग़ैरत-ए-क़ौनी से गड़ गया
पूछा जो मैंने, "आप का पर्दा वो क्या हुआ?"
कहने लगीं कि अक़्ल पे मर्दों की पड़ गया
निकालो ना बे-नक़ाब...
निकलो ना बे-नक़ाब, ज़माना ख़राब है
निकलो ना बे-नक़ाब, ज़माना ख़राब है
और उस पे ये शबाब, ज़माना ख़राब है
निकलो ना बे-नक़ाब, ज़माना ख़राब है
सब कुछ हमें ख़बर है, नसीहत ना किजीए
सब कुछ हमें ख़बर है, नसीहत ना किजीए
सब कुछ हमें ख़बर है, नसीहत ना किजीए
सब कुछ हमें ख़बर है, नसीहत ना किजीए
क्या होंगे हम ख़राब, ज़माना ख़राब है
क्या होंगे हम ख़राब, ज़माना ख़राब है
और उस पे ये शबाब, ज़माना ख़राब है
निकलो ना बे-नक़ाब, ज़माना ख़राब है
मतलब छुपा हुआ है यहाँ हर सवाल में
मतलब छुपा हुआ है यहाँ हर सवाल में
मतलब छुपा हुआ है यहाँ हर सवाल में
मतलब छुपा हुआ है यहाँ हर सवाल में
दो सोच कर जवाब, ज़माना ख़राब है
दो सोच कर जवाब, ज़माना ख़राब है
और उस पे ये शबाब, ज़माना ख़राब है
निकलो ना बे-नक़ाब, ज़माना ख़राब है
राशिद, तुम आ गए हो ना आख़िर फ़रेब में?
राशिद, तुम आ गए हो ना आख़िर फ़रेब में?
राशिद, तुम आ गए हो ना आख़िर फ़रेब में?
राशिद, तुम आ गए हो ना आख़िर फ़रेब में?
कहते ना थे जनाब, ज़माना ख़राब है
कहते ना थे जनाब, ज़माना ख़राब है
और उस पे ये शबाब, ज़माना ख़राब है
निकलो ना बे-नक़ाब, ज़माना ख़राब है
और उस पे ये शबाब, ज़माना ख़राब है
निकलो ना बे-नक़ाब, ज़माना ख़राब है
ज़माना ख़राब है, ज़माना ख़राब है
ज़माना ख़राब है, ज़माना ख़राब है
ज़माना ख़राब है
Niklo Na Benaqab was written by Mumtaz Rashid.
Niklo Na Benaqab was produced by Pankaj Udhas.